Saturday, February 6, 2010

बहारे आती  है चली  जाती  है, बस तन्हाई रह जाती है,

दिल पे क्या गुज़री ये समझना मुश्किल है,
जब अपनी ही बात अधूरी रह जाती है.
गम के घर में रहते है राम
बीते कल याद आ ही जाते है,
कितना दर्द होता है दिल मै,

जब सपने अधूरी रह जाती है.

बहारे आती है,चली जाती है बस तन्हाई . . . . . . . . .. ..

बिताये कल की यादे अक्सर 
 आखो में आसू ले आती है,
कितना दर्द होता है जब सावन,
 में बरसाते अधूरी रह जाती है.

बहारे आती है,चली जाती है बस तन्हाई . . . . . . . . .. ..

Thursday, February 4, 2010

सावन का दर्द कुछ खास हो जाता है

सावन का  दर्द कुछ खास हो जाता है
उनके न आने से सावन में भी ,
 अपना ही घर शमशान  हो जाता  है.


हम इस इंतजार में बेठे रहते है
आयेगे हमारे प्रीतम इन सुने नैनो की बगिया में,
गुजेगी  कोयल की चहक यह  आस लगाये रहते है

हम तो यह सोचते है की कम से कम,
 एक मुलाकात में एक बात भी हो  जाये,
कर के बात अपने  प्रीतम से ,
यह जन्म भी धन्य  हो जाये.

  कितना दर्द होता है जब,
इस सावन  में भी,
 अपनी मुलाकात अधूरी रह जाती है , 
 अपनी ही बात अधूरी रह जाती है.

सावन का  दर्द कुछ खास होता है
उनके न आने से . . . . . . .